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कुमार विश्वास धूर्त होने के साथ साथ अवसरवादी बनने की रेस में हैं ?

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कुमार विश्वास धूर्त होने के साथ साथ अवसरवादी बनने की रेस में हैं ?

"कोई दीवाना कहता है," कविता से देश-दुनिया में लोकप्रिय होने वाले कवि कुमार विश्वास अपने बयानों को लेकर इन दिनों सुर्खियों में हैं। उनके हालिया बयानों में झूठा राष्ट्रवाद और अवसरवाद साफ-साफ नजर आ रहा है। यूं तो कुमार उच्च शिक्षा प्राप्त किए हुए एक प्रोफेसर, लोकप्रिय कवि और कथावाचक हैं, लेकिन वर्तमान समय में उनके मुंह से, जो शब्द या बयान निकल रहे हैं उससे साफ है कि कुमार विश्वास मूर्ख न होकर भी धूर्त बनने और अवसरवादी बनने की राह पर चल रहे हैं। एक इंटरव्यू के दौरान कुमार विश्वास ने राजनेताओं पर निशाना साधते हुए कहा था कि 'प्रत्येक नेता यह जानता है कि समाज, राज्य, देश की क्या परिस्थिति है क्या सही है क्या गलत, लेकिन वे आम लोगों के सामने ऐसे पेश आते हैं जैसे वो कुछ जानते ही नहीं हैं या फिर वो मूर्ख हैं, लेकिन नेता असल में मूर्ख नहीं बल्कि धूर्त हैं।' कुमार का ये बयान राजनेताओं की कार्यशैली पर एकदम सटीक बैठता है। लेकिन कभी नेताओं को धूर्त बताने वाले कुमार अब स्वयं ही धूर्त बनने की रेस में क्यों दौड़ना शुरू कर दिये हैं ? इसका जबाव छुपा है बशीर बद्र साहब के एक शेर में। बशीर साहब ने क्या खूब लिखा है... "शौक होते हैं हर उम्र में जुदा खिलौने, माशूका, रुतबा और खुदा" कुमार विश्वास के परिपेक्ष में देखें तो समझ आता है कि वे खिलौने और माशूका वाली उम्र तो पार कर चुके हैं। खुदा वाला शौक पूरा करने के लिए वे पहले ही कथावाचन भी शुरू कर चुके हैं, जिसमें वह सफल भी रहे हैं। अब अगर कोई शौक बाकी रह जाता है तो वह है रुतबे का। कुमार अपने इसी बचे हुए शौक को पूरा करने के लिए इन दिनों ऊल-जुलूल बयानबाजी कर रहे हैं। कुमार विश्वास पहले भी अपने रुतबे वाले शौक को पूरा करने के लिए प्रयास कर चुके हैं, लेकिन तब उन्हें सफलता नहीं मिली। अन्ना आन्दोलन से निकली आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल के साथ रहते हुए उन्होंने अपने इस शौक को पूरा करना चाहा था लेकिन वे असफल रहे। कुछ समय बाद केजरीवाल से मतभेद होने के चलते उन्होंने आम आदमी पार्टी छोड़ दी थी। अब जब दिल्ली विधानसभा चुनाव नजदीक आ चुके हैं और पूरे देश में एक खास तरह से माहौल बना हुआ है, तो कुमार विश्वास इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते हैं। इसीलिए वह कभी सोनाक्षी सिन्हा के इकबाल से शादी करने पर शत्रुघ्न सिन्हा के घर का नाम रामायण लेते हुए एक धर्म विशेष पर निशाना साध रहे हैं, तो कभी सैफअली खान और करीना कपूर के बेटे के नाम तैमूर होने पर उसे इतिहास से जोड़कर विदेशी आक्रांता तैमूर लंग के नाम से जोड़ रहे हैं और कह रहे हैं कि अगर सैफ-करीना तैमूर को हीरो बनाना चाहेंगे तो वे उसे खलनायक भी नहीं बनने देंगे। वर्तमान समय में देश की राजनीति में हिंदू-मुस्लिम फैक्टर एक बड़ी भूमिका अदा कर रहा है, जिसका प्रभाव चुनावी रैलियों, मतदान और परिणामों में साफ नजर आता रहा है। दरअसल दिल्ली बीजेपी के पास सीएम कैंडिडेट का कोई चेहरा नहीं है, जिसे बलबूते पर पार्टी चुनावी मैदान में उतर सके। कुमार इसी मौके का फायदा उठाकर भाजपा की ओर टिकट पाकर चुनावी मैदान में उतरने की मंशा में हैं।

anshul chauhan

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anshul chauhan

I am a post graduate diploma holder in Journalism and Mass Communication with having experience in content writing, political consulting and trust & safety specialist.